गर्जिया देवी मंदिर: उत्तराखंड का एक पवित्र और प्राकृतिक आध्यात्मिक स्थल

गर्जिया देवी मंदिर


गर्जिया देवी मंदिर, जिसे गिरिजा देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, उत्तराखंड के नैनीताल जिले में रामनगर तहसील के पास सुंदरखाल गांव में स्थित है। यह मंदिर रामनगर शहर से लगभग 12-15 किलोमीटर और नैनीताल से करीब 75 किलोमीटर की दूरी पर है। मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यह कोसी नदी के बीचों-बीच एक छोटी पहाड़ी या चट्टान पर बना है, जो इसे एक अनूठा और मनोरम दृश्य प्रदान करता है। मंदिर तक पहुंचने के लिए एक पुल पार करना पड़ता है, जिसके बाद खड़ी सीढ़ियों को चढ़कर मंदिर के शीर्ष पर पहुंचा जाता है। यह मंदिर कॉर्बेट नेशनल पार्क के बाहरी इलाके में स्थित है, जो इसे पर्यटकों और श्रद्धालुओं दोनों के लिए आकर्षक बनाता है।

पहुंचने के रास्ते
– सड़क मार्ग: मंदिर राष्ट्रीय राजमार्ग 121 पर स्थित है। रामनगर से टैक्सी, ऑटो, या बस द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है। ढिकुली गांव, जो मंदिर से मात्र 2 किलोमीटर दूर है, में कई अच्छे होटल और रिसॉर्ट उपलब्ध हैं।  
– रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन रामनगर रेलवे स्टेशन है, जो मंदिर से 12-13 किलोमीटर दूर है।  
– हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा पंतनगर हवाई अड्डा (लगभग 90 किलोमीटर) या दिल्ली का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा है।  
– पार्किंग और सुविधाएँ: मंदिर के पास मुफ्त पार्किंग की सुविधा है, और आसपास पूजा सामग्री, प्रसाद, और छोटी दुकानें उपलब्ध हैं।  

महत्व और प्रसिद्धि
गर्जिया देवी मंदिर एक पवित्र शक्ति पीठ है, जो माता पार्वती के अवतार गर्जिया देवी (या गिरिजा देवी) को समर्पित है। माता पार्वती को हिमालय की पुत्री (गिरिराज की बेटी) माना जाता है, इसलिए उन्हें गिरिजा कहा जाता है। इस मंदिर की कई विशेषताएँ और मान्यताएँ इसे प्रसिद्ध बनाती हैं:  

1. पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व:  
– मंदिर का इतिहास सदियों पुराना माना जाता है, हालांकि इसका ठोस मूल विवादास्पद है। स्थानीय कथाओं के अनुसार, यह मंदिर पहले "उपट देवी" या "उपरिया देवी" के नाम से जाना जाता था। एक किंवदंती के अनुसार, मंदिर की चट्टान कोसी नदी की बाढ़ में बहकर यहाँ आई थी, जिसके बाद इसे गर्जिया देवी मंदिर के रूप में स्थापित किया गया।  
– एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, भैरव देव, जो भगवान शिव के भक्त थे, ने अपनी बहन गर्जिया से कोसी नदी से "विवाह" करने और नदी के बीच में रहकर उसकी उग्रता को नियंत्रित करने का अनुरोध किया। गर्जिया, जो माता पार्वती का अवतार थीं, ने ऐसा किया, और तब से कोसी नदी में बाढ़ की समस्या कम हो गई। इस कारण मंदिर को बाढ़ और आपदाओं से सुरक्षा का प्रतीक माना जाता है।  
– मंदिर को अष्टदश शक्ति पीठों में से एक माना जाता है, जो इसे और अधिक महत्वपूर्ण बनाता है।  

2. आध्यात्मिक महत्व:  
– मंदिर में 4.5 फीट ऊँची गर्जिया देवी की मूर्ति स्थापित है, साथ ही भगवान गणेश, सरस्वती, और भैरव की मूर्तियाँ भी हैं। मान्यता है कि गर्जिया देवी की पूजा के साथ भैरव देव की पूजा अनिवार्य है, अन्यथा पूजा अधूरी मानी जाती है।  

– श्रद्धालु यहाँ सच्चे दिल से मनोकामना मांगते हैं, और ऐसा माना जाता है कि माता उनकी हर मुराद पूरी करती हैं। नवविवाहित जोड़े वैवाहिक सुख और निःसंतान दंपति संतान प्राप्ति के लिए यहाँ दर्शन करने आते हैं।  – एक अनोखी परंपरा के अनुसार, मंदिर की सीढ़ियों पर चढ़ते समय श्रद्धालु घास की परतों को छूकर और उसमें गाँठ बाँधकर मनोकामना माँगते हैं। जब उनकी मनोकामना पूरी हो जाती है, तो वे उस गाँठ को खोलने वापस आते हैं।

3. प्राकृतिक और सांस्कृतिक आकर्षण:  
– मंदिर का स्थान कोसी नदी के बीचों-बीच एक चट्टान पर होने के कारण इसे एक अनूठा और मनमोहक दृश्य प्राप्त है। हरे-भरे जंगलों और बहती नदी का संयोजन इसे एक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक स्थल बनाता है।  
– यह मंदिर न केवल श्रद्धालुओं बल्कि पर्यटकों को भी आकर्षित करता है, जो कॉर्बेट नेशनल पार्क की यात्रा के दौरान यहाँ रुकते हैं। मंदिर के आसपास कोसी नदी में स्नान करने की परंपरा भी प्रचलित है।  
– मंदिर के पास का क्षेत्र, विशेष रूप से ढिकुली, लगभग 3,000 साल पुरानी सभ्यता "वैराट पट्टन" से जुड़ा हुआ है, जो इसकी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाता है।  

4. त्योहार और भीड़:  
– कार्तिक पूर्णिमा (नवंबर या दिसंबर में) के दौरान यहाँ एक विशाल मेला आयोजित होता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु माता के दर्शन और कोसी नदी में स्नान करने आते हैं। इस समय मंदिर को रंग-बिरंगी रोशनी और दीयों से सजाया जाता है।  
– नवरात्रि, गंगा दशहरा, शिवरात्रि, और बसंत पंचमी जैसे त्योहारों पर भी यहाँ भारी भीड़ उमड़ती है। विशेष रूप से नवरात्रि में विशेष पूजा और अनुष्ठान आयोजित किए जाते हैं।  

मंदिर का समय और नियम
 
– समय: मंदिर सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक और फिर शाम 4 बजे से रात 8 बजे तक खुला रहता है।  
– फोटोग्राफी: मंदिर परिसर में फोटोग्राफी की अनुमति है, लेकिन पूजा के दौरान सम्मान बनाए रखना चाहिए।
– सलाह: त्योहारों के दौरान भारी भीड़ हो सकती है, इसलिए सुबह जल्दी दर्शन के लिए जाना बेहतर है। सीढ़ियाँ खड़ी हैं, इसलिए बुजुर्गों और बच्चों को सावधानी बरतनी चाहिए।  

क्यों प्रसिद्ध है?  
गर्जिया देवी मंदिर अपनी आध्यात्मिक शक्ति, प्राकृतिक सुंदरता, और पौराणिक कथाओं के कारण प्रसिद्ध है। कोसी नदी के बीच चट्टान पर स्थित यह मंदिर एक चमत्कारी सिद्धपीठ माना जाता है, जहाँ श्रद्धालुओं की मनोकामनाएँ पूरी होती हैं। इसकी अनूठी स्थिति, कॉर्बेट नेशनल पार्क के पास होने, और प्राचीन सांस्कृतिक महत्व के कारण यह देश-विदेश के श्रद्धालुओं और पर्यटकों के लिए एक प्रमुख गंतव्य है।


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