जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के संरक्षण के लिए **प्रोजेक्ट टाइगर** कार्यक्रम चलाया जाता है। यह भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया एक महत्वपूर्ण संरक्षण पहल है, जिसका उद्देश्य रॉयल बंगाल टाइगर की घटती आबादी को बचाना और उनके प्राकृतिक आवास की रक्षा करना है। नीचे इस कार्यक्रम और इसके प्रभाव का विस्तार से वर्णन किया गया है:
प्रोजेक्ट टाइगर: पृष्ठभूमि और शुरुआत
प्रारंभ: प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत 1973 में भारत सरकार द्वारा की गई थी। यह उस समय शुरू हुआ जब यह स्पष्ट हो गया था कि बाघों की संख्या अवैध शिकार, आवास विनाश और मानव-वन्यजीव संघर्ष के कारण तेजी से कम हो रही थी। 1970 के दशक में भारत में बाघों की संख्या लगभग 1,800 तक गिर गई थी, जो एक चिंताजनक स्थिति थी।
जिम कॉर्बेट का योगदान: जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क को प्रोजेक्ट टाइगर के तहत पहले नौ टाइगर रिजर्व में से एक के रूप में चुना गया। यह पार्क अपनी समृद्ध जैव-विविधता और बाघों की स्वस्थ आबादी के लिए उपयुक्त था।
उद्देश्य:
– बाघों की आबादी को बढ़ाना और उनकी प्रजाति को विलुप्त होने से बचाना।
– बाघों के प्राकृतिक आवास को संरक्षित करना।
– मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करना।
– स्थानीय समुदायों को संरक्षण में शामिल करना और पर्यावरण-जागरूकता फैलाना।
प्रोजेक्ट टाइगर का कार्यान्वयन जिम कॉर्बेट में
जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में प्रोजेक्ट टाइगर के तहत कई कदम उठाए गए हैं, जो बाघों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं:
1. आवास संरक्षण:
– पार्क के 520 वर्ग किलोमीटर के कोर क्षेत्र को सख्ती से संरक्षित किया जाता है, जहाँ मानव गतिविधियाँ न्यूनतम होती हैं। यह बाघों के लिए सुरक्षित प्रजनन और शिकार का क्षेत्र प्रदान करता है।
– रामगंगा और कोसी नदियाँ, घने जंगल, और घास के मैदान बाघों के लिए आदर्श आवास बनाते हैं, जिन्हें संरक्षित करने के लिए वन विभाग और गैर-सरकारी संगठन मिलकर काम करते हैं।
– अवैध कटाई और अतिक्रमण को रोकने के लिए सख्त निगरानी की जाती है।
2. अवैध शिकार पर नियंत्रण:
– बाघों और उनके शिकार (जैसे चीतल, सांभर) के अवैध शिकार को रोकने के लिए वन रक्षकों की टीमें तैनात हैं।
– पार्क में कैमरा ट्रैप, ड्रोन, और जीपीएस-आधारित निगरानी प्रणाली का उपयोग किया जाता है।
– स्थानीय समुदायों को अवैध शिकार के खिलाफ जागरूक किया जाता है और उन्हें वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान किए जाते हैं।
3. शिकार आधार का संरक्षण:
– बाघों के लिए पर्याप्त शिकार (जैसे हिरण, जंगली सुअर) की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए उनके आवास को संरक्षित किया जाता है।
– घास के मैदानों (चौर) को बनाए रखा जाता है, जो शाकाहारी जीवों के लिए महत्वपूर्ण हैं और अप्रत्यक्ष रूप से बाघों की खाद्य श्रृंखला को मजबूत करते हैं।
4. निगरानी और अनुसंधान:
– बाघों की आबादी की निगरानी के लिए नियमित गणना की जाती है। कैमरा ट्रैप और पगमार्क ट्रैकिंग के माध्यम से उनकी संख्या और स्वास्थ्य पर नजर रखी जाती है।
– वैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान के माध्यम से बाघों के व्यवहार, प्रजनन, और आवास की जरूरतों को समझा जाता है।
5. इको-टूरिज्म और जागरूकता:
– पार्क में नियंत्रित पर्यटन को बढ़ावा दिया जाता है, जिससे प्राप्त आय का उपयोग संरक्षण कार्यों में किया जाता है।
– पर्यटकों और स्थानीय लोगों के लिए जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, ताकि वे बाघों और पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझें।
– स्थानीय समुदायों को गाइड, ड्राइवर, और रिसॉर्ट कर्मचारी के रूप में रोजगार देकर संरक्षण में उनकी भागीदारी सुनिश्चित की जाती है।
प्रोजेक्ट टाइगर का प्रभाव
प्रोजेक्ट टाइगर के लागू होने के बाद जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के संरक्षण में उल्लेखनीय सफलता मिली है। इसके प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं:
1. बाघों की आबादी में वृद्धि:
– 1973 में जब प्रोजेक्ट टाइगर शुरू हुआ, तब जिम कॉर्बेट में बाघों की संख्या सीमित थी। आज, पार्क में लगभग 200-250 बाघ हैं (हाल के अनुमानों के आधार पर), जो इसे भारत के सबसे घने बाघ-आबादी वाले क्षेत्रों में से एक बनाता है।
– नियमित निगरानी और संरक्षण प्रयासों के कारण बाघों का प्रजनन दर स्थिर रहा है, और नवजात शावकों की जीवित रहने की दर में सुधार हुआ है।
2. पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन:
– बाघ एक शीर्ष शिकारी (Apex Predator) है, जो पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित रखता है। बाघों की स्वस्थ आबादी ने शाकाहारी जीवों (जैसे चीतल, सांभर) की आबादी को नियंत्रित किया, जिससे वनस्पति और जंगल का स्वास्थ्य बना रहा।
– रामगंगा नदी और घास के मैदानों का संरक्षण अन्य प्रजातियों, जैसे पक्षियों और सरीसृपों, के लिए भी लाभकारी रहा है।
3. पर्यटन और आर्थिक विकास:
– जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों को देखने के लिए दुनिया भर से पर्यटक आते हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिला है।
– रामनगर और आसपास के क्षेत्रों में रिसॉर्ट्स, होटल्स, और पर्यटन से संबंधित व्यवसायों में वृद्धि हुई है, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिला है।
– पर्यटन से प्राप्त आय का एक हिस्सा संरक्षण कार्यों में पुनर्निवेश किया जाता है।
4. स्थानीय समुदायों का सहयोग:
– प्रोजेक्ट टाइगर ने स्थानीय समुदायों को संरक्षण में शामिल किया है। उन्हें वैकल्पिक आजीविका (जैसे गाइड, हस्तशिल्प, और पर्यटन सेवाएँ) प्रदान की गई हैं, जिससे उनकी निर्भरता जंगल के संसाधनों पर कम हुई है।
– मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए गाँवों के पास बाड़ लगाने और मुआवजा योजनाओं को लागू किया गया है।
5. वैश्विक पहचान:
– जिम कॉर्बेट नेशनल पार्क को प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता के कारण वैश्विक स्तर पर संरक्षण मॉडल के रूप में मान्यता मिली है।
– यह पार्क वन्यजीव विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं, और प्रकृति प्रेमियों के लिए एक महत्वपूर्ण अध्ययन केंद्र बन गया है।
चुनौतियाँ
हालांकि प्रोजेक्ट टाइगर ने जिम कॉर्बेट में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है, फिर भी कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं:
– मानव-वन्यजीव संघर्ष: पार्क के आसपास के गाँवों में बाघों और तेंदुओं द्वारा मवेशियों या कभी-कभी इंसानों पर हमले की घटनाएँ होती हैं, जिससे स्थानीय लोगों में असंतोष हो सकता है।
– पर्यटन का दबाव: अधिक संख्या में पर्यटकों के कारण पार्क के कुछ क्षेत्रों में पर्यावरण पर दबाव बढ़ा है। अनियंत्रित पर्यटन से वन्यजीवों को परेशानी हो सकती है।
– जलवायु परिवर्तन: बदलता मौसम और मानसून पैटर्न पार्क की पारिस्थितिकी को प्रभावित कर सकता है, जैसे नदियों का प्रवाह और घास के मैदानों की स्थिति।
– अवैध गतिविधियाँ: यद्यपि अवैध शिकार पर काफी हद तक नियंत्रण है, फिर भी इसे पूरी तरह खत्म करना चुनौतीपूर्ण है।
भविष्य की दिशा
– तकनीकी उपयोग: ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी, और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करके बाघों की निगरानी को और प्रभावी किया जा रहा है।
– सतत पर्यटन: पार्क में इको-टूरिज्म को और बढ़ावा देने के लिए कम प्रभाव वाले पर्यटन मॉडल को लागू किया जा रहा है।
– समुदाय सहभागिता: स्थानीय समुदायों को और अधिक प्रशिक्षण और आर्थिक अवसर देकर संरक्षण में उनकी भूमिका को मजबूत किया जा रहा है।
– क्षेत्र विस्तार: बफर जोन और कॉरिडोर को बढ़ाकर बाघों के लिए अधिक सुरक्षित आवास सुनिश्चित किया जा रहा है।
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